Saturday, December 31, 2016

HAPPY NEW YEAR 2017 (One page calendar)

YEAR 2017
      *********** MONTHS **********
****** DATES ****** MAY AUG FEB     JUN SEP APR   JAN
        MAR     DEC JUL OCT
              NOV        
1 8 15 22 29 MON  TUE WED THU FRI SAT SUN
2 9 16 23 30 TUE WED THU FRI SAT SUN MON 
3 10 17 24 31 WED THU FRI SAT SUN MON  TUE
4 11 18 25   THU FRI SAT SUN MON  TUE WED
5 12 19 26   FRI SAT SUN MON  TUE WED THU
6 13 20 27   SAT SUN MON  TUE WED THU FRI
7 14 21 28   SUN MON  TUE WED THU FRI SAT
Prepared by Jaswinder Singh Kainaur
Akashvani, Chandigarh
Email: jaswinderkainaur@gmail.com

Wednesday, December 7, 2016

Indian Navy has launched a rescue operation and has sent four ships to bring them back to safety.


According to a report in India Today, the Indian Meteorological Department has observed a depression over south-eastern part of Bay of Bengal (about 310 km from Port Blair), which is moving in the northwest direction and might intensify into a cyclonic storm. The heavy rainfall and severity in the weather can be attributed to this climatic condition.
Considering the possibility of an impending cyclonic storm, the Directorate of Disaster Management of Andamans summoned the Indian Navy. An official statement by the Navy said that it has sent its ships INS Bitra, Bangaram, Kumbhir, and LCU 38.
All the four ships will assist in ferrying stranded tourists from Havelock to Port Blair. While the wind and torrential rains are making it difficult for the operation to accelerate, the safety of tourists is being given top priority. INS Bitra and INS Bangaram, which are small ships, have been dispatched to pick up tourists from the jetty and ferry them to the larger ships, INS Kumbhir and LCU 38.
JSK
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Thursday, October 27, 2016

लेखक *जसविंदर सिंह काईनौर*
श्री राम कृपाल (MTS) आकाश्वाणी चंडीगढ़ को रिटायरमैंट की बधाई
      आकाशवाणी चंडीगढ़ से श्री राम कृपाल, मल्टी टास्क फोर्स (MTS) के पद से दिनांक 31 अक्तूबर 2016 को रिटायर हो रहे हैं। उनका जन्म 15 अक्तूबर 1956 को श्री टीडी राम और श्रीमती बचना देवी के घर गाँव व डाकघर सराय रजई सेमरा, तहसील पट्टी, ज़िला परतापगढ़ (यू॰ पी॰) में हुआ था। उन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव में ही की थी। उसके बाद नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई दूसरे कस्बे कोहंडौर (यू॰ पी॰) में हासिल की।
      सन 1973 में वह रोटी-रोज़ी की तलाश में चंडीगढ़ आ गए थे। यहाँ आकर उन्होने मीटर फैक्ट्री, मलेरिया और डाकघर विभाग आदि में काम किया। फिर सन 1980 में उनको पियन की सरकारी नौकरी आकाशवाणी चंडीगढ़ में मिल गयी थी। हालांकि उसी वक्त उनको बैंक आफ बड़ौदा में भी पियन की नौकरी की पेशकश मिली थी। लेकिन उन्होंने आकाशवाणी चंडीगढ़ मीडिया विभाग को ही पहल दी थी। उस वक्त उनको रुपये 96 से 110 के सकेल में कुल मासिक वेतन 350 रुपये मिलना शुरू हुआ था। विवाहित जीवन से उनके 07 बच्चे हैं। जिनमें 04 लड़के और तीन लड़कियों हैं। उनमें से एक लड़का मंद-बुधि हैं। उन्होंने चार बच्चों की शादी कर दी है।
      विचार-विमर्श के दौरान उन्होंने बताया कि 36 साल की पूरी नौकरी के दौरान कार्यालय का काम पूरी निष्ठा और लगन के साथ किया है। हिंदु धर्म में पैदा होने के कारण उनका अपने धर्म  के प्रति पूर्ण विश्वास है। इसलिए वह धार्मिक प्रक्र्ति वाले इंसान हैं। विभाग के साथ-साथ वह समाज के सभी प्राणियों को संदेश देना चाहते हैं कि अपना काम सच्ची लगन से करते हुए सभी के साथ साथ अपना व्यवहार ठीक बनाए रखें। अंत में वह आकाशवाणी चंडीगढ़ के सभी परिवार के साथ-साथ पूरे विभाग को धन्यावाद प्रकट करते हैं। पिछले 2-3 सालों में केंद्रीय सरकार ने उनको पद वर्ग पियन जो ग्रुप डी में आता था, को मल्टी टासक फोर्स (MTS) के तौर पर पदोन्नुत  करके ग्रुप सी में कर दिया था। इसलिए वह 36 साल की सर्विस पूरी करते हुए 31 अक्तूबर 2016 को MTS के पद से सेवानिव्रत रिटायर हो रहे हैं। शुरू में 350 रुपये वेतन प्राप्त करने वाले श्री राम कृपाल आज 39000 रुपये वेतन प्राप्त करते हुए रिटायर हो रहे हैं।
      रिटायरमैंट के शुभ अवसर पर प्रसार भारती परिवार उनको शुभ-कामनाएँ देता है। जहाँ भी वह रहें स्वस्थ रहें। अगर कोई भी स्टाफ सदस्व उनको शुभ-कामनाएँ देना चाहते हों तो उनके मोबाइल नंबर 8558952807 पर दे सकते हैं।
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Friday, October 7, 2016

आकाशवाणी चंडीगढ़ में हिन्‍दी दिवस 2016 का समापन व पुरस्‍कार वितरण समारोह

आकाशवाणी चंडीगढ़ में 04 अक्तूबर 2016 को हिन्‍दी दिवस का समापन व पुरस्‍कार वितरण समारोह का आयोजन

प्रत्येक साल की तरह इस साल भी आकाशवाणी चंडीगढ़ में सितम्‍बर के दूसरे पखवाड़े को हिन्‍दी पखवाड़े के रूप में मनाया गया तथा 04.10.2016 को पुरस्‍कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया।   हिन्‍दी पखवाड़े के दौरान टिप्‍पण व प्रारूप लेखन, निबंध लेखन, हास्‍य काव्‍य पाठ तथा सुलेख व श्रुतलेख (एम टी एस कर्मचारियों के लिए) प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया।
   दिनांक 04.10.2016 को मुख्‍य समारोह के अवसर पर तात्‍कालिक आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉं. रेणुका नय्यर, पूर्व सातित्‍य संपादक, मुख्‍य अतिथें के रूप में उपस्थित थे। उन्‍होंने आकाशवाणी कर्मियों को सम्‍बोधित करते हुये कहा कि कोई भी भाषा सीखना उच्‍छी बात है लेकिन अपनी भाषा का सम्‍मान पहले जरूरी है। हिंदी आज विश्‍व भर के 72 करोड़ लोग जानते समझते हैं, सीख रहे हैं। विदेशों में भी हिंदी बहुत लोकप्रिय है। वहॉं के बच्‍चे यहॉं आ कर हिंदी सीखते है। सरकारी कार्यालयों इस तरह के आयोजन को उन्‍होंने सराहनीय प्रयास बताया।
   निर्णायक मंडल के सदस्‍यों डॉं. शिवानी चोपड़ा, विभागाध्‍यक्ष हिंदी विभाग, डी.ए.वी कॉलेज, चंडीगढ़ तथा डॉं. दीपक माड्ढा, उप निदेशक, सी. एफ़. सी. एल ने आशु भाषण प्रतियोगिता के परिणामों की घोषणा की। डॉ़ चोपड़ा ने कहा कि आकाशवाणी भाषा के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी पूरी तरह निभा रहा है। उन्‍होंने सभी उपस्थित कर्मियों से हिंदीकी पुरतकें पढ़ने के लिये कहा। डॉं माड्ढा ने आकाशवाणी कर्मियों की प्रस्‍तुति की प्रशंसा करते हुये कहा कि आज आकाशवाणी लाइव का अनुभव अत्‍यंत सुखद रहा। सभी प्रतिभागियों की प्रस्‍‍तुति बहुत अच्‍छी थी। 
   कार्यालय प्रमुख श्रीमती पूनम अमृत सिंह ने आकाशवाणी परिवार को इस आयोजन की बधाई देते हुये कहा कि उनसे राजभाषा में और अधिक कार्य करने की अपेक्षा है। http://rajbhasha.nic.in तथा http://ildc.gov.in/Hindi/hdownloadhindi.htm में यूनिकोड एनकोडिंग समर्थित फ़ॉन्‍ट्स और सॉफ़टवेयर नि:शुल्‍क उपलबध हैं। उन्होने ने सभी कर्मचारियों को सम्‍बोधित करते हुये कहा कि इस जानकारी का लाभ उठाते हुये राजभाषा में और अधिक कार्य करने का प्रयत्‍न करें।
   श्रीमती नीना बहल, सहायक निदेशक (राजभाषा) ने सभी साथियों से अनुरोध किया राजभाषा में अधिकाधिक कार्य करें। उन्‍होंने मुख्‍य अतिथि और निर्णायक गणों का आभार व्‍यक्‍त किया। काशवाणी चंडीगढ़ के सभी स्टाफ सदस्य इस समारोह में शामिल हुए।
समारोह में पुरस्‍कृत हुये विजेताओं के नाम हैं:-
कुलवीर कपूर, रमेश कपूर, बानो पंडिता, ऋतु सन्‍धु, ओम प्रकाश, सत्‍य नारायण सिंह, राम कृपाल, प्रेम प्रकाश, अश्‍िवनी कुमार, जसविन्‍दर सिंह काईनौर’, परविन्‍दर कौर, नईम अहमद, मीनाक्षी कालिया, मनिन्‍दर सिंह, अनिल पुंज, सर्वप्रिय निर्मोंही, कुलभूषण श्‍ार्मा, विनीत कौर, रजनी शर्मा, विनोद कुमार कश्यप और उमेश कश्‍यप आदि इसी स्मारोह की कुछ फोटो नीचे दिये जा रहे हैं।
                        Contribution by the blogger *JSK* Email: jaswinderkainaur@gmail.com

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Wednesday, September 7, 2016


Meet IAS Officer Ms. Kavitha Ramu: Bureaucrat by Profession, Bharatanatyam Dancer by Passion

Monday, September 5, 2016

जसविंदर सिंह काईनौर
आकाशवाणी चंडीगढ़
आकाशवाणी और दूरदर्शन का महत्वपूर्ण इतिहास
जब से मनुष्य ने अपनी दुनिया को जाना है, तब से उसकी संघर्ष-यात्रा इस नारे से प्रेरित है कि “कर लो दुनिया मुटठी में”। विज्ञान और तकनीक के ऐताहासिक विकास के दौरान आविष्कारों की कहानी बड़ी मजेदार है। रेडियो और टेलिविजन विज्ञान के ऐसे चमत्कारों में से दो मुख्य चमत्कार हैं। जिन्होंने  मनुष्य की व्यक्तिगत और सामूहिक प्रगति में विशेष योगदान दिया है।
आकाशवाणी
वैसे तो वर्ष 1820 से रेडियो के बारे खोजें शुरू हो गई थीं लेकिन रेडियो के खोज में पूर्ण रूप से सफलता इटली निवासी श्री गुलयेलमो मार्कोनी (Sh. Gugliemo Morconi) को वर्ष 1901 में मिली थी। वह पेशे से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर थे। बीसवीं सदी को विज्ञानिक खोजों की सदी मानी जाती है। संसार में रेडियो का प्रसारण वर्ष 1901 में अटलांटिक महासागर के आर-पार शुरू हुआ था। भारत में रेडियो का प्रथम प्रसारण मुम्बई शहर से जून 1923 से एक प्राइवेट रेडियो क्लब, मुम्बई द्वारा शुरू किया गया था। इसलिए भारत में रेडियो के प्रसारण का आगाज़ 1923 से माना जाता है। फिर एक और दूसरा रेडियो प्रसारण नवम्बर 1923 से कलकत्ता रेडियो क्लब द्वारा शुरू किया गया । वर्ष 1924 से इंडियन ब्राडकास्टिंग नामक एक कंपनी की उत्पति हुई। वह दोनों रेडियो प्रसारण उस कंपनी के अधीन चले गए थे।
      भारत में नियमित प्रसारण सेवा के उस विचार को सर्वप्रथम 1926 में भारत सरकार और “दि इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी” के बीच हुए एक समझौते के रूप में मूर्तरूप दिया गया। इस समझौते के अधीन एक मुम्बई में तथा दूसरा कलकत्ता केंद्रों के निर्माण के लिए लाईसेंस दिये  गये थे। तदानुसार, 23 जुलाई, 1927 को मुम्बई केंद्र का उद्घाटन किया गया। कुछ महीनों के बाद कलकत्ता केंद्र का उद्घाटन हुआ। भारत सरकार और “दि इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी” के बीच हुए उस समझौते के तहत उन दोनों केंद्रों पर कार्य फरवरी 1930 तक चलता रहा।
            अप्रत्याशित रूप से लगभग तीन वर्ष बाद 01 मार्च, 1930 को कंपनी बंद होने के कारण वह समझौता टूट गया और रेडियो प्रसारण बंद हो गया। इस से ऐसा लगने लगा था  कि भारत में प्रसारण का कार्य विफल हो गया जबकि अन्य देश बहुत अच्छी प्रगति कर रहे थे। लेकिन सरकार ने जनता की माँग को ध्यान में रखते हुए इंडियन ब्राडकास्टगिंग कंपनी की परिसंपत्तिया अधिग्रहण करके दोनों केंद्रों को 01 अप्रैल, 1930 से दो वर्षों की अवधि के लिए प्रयोगात्मक आधार पर स्वंय चलाने का निर्णय लिया। अंतिम रूप से भारत सरकार ने मई 1932 में अपने प्रबंध के अधीन इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सेवा को जारी रखने का निर्णय किया तथा उसे उद्योग और श्रम विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में कर दिया। मार्च, 1935 में उद्योग और श्रम विभाग के अधीन कार्य करने के लिए प्रसारण नियंत्रक के अधीन एक स्वतंत्र विभाग का गठन किया गया।  आकाशवाणी विभाग के प्रथम प्रसारण नियंत्रक (महानिदेशक) श्री लियोनल फ़ीलडन  (Lionel Fielden) को कार्यभार संभाला गया। जून, 1936 में इंडियन स्टेट  ब्राडकास्टिंग सेवा का नाम बदलकर आकाशवाणी कर दिया गया। नवम्बर, 1937 में प्रसारण को संचार विभाग में स्थानान्तरित कर दिया गया। 23 फरवरी, 1946 से इस विभाग को  सूचना और कला विभाग के रूप में पुनर्गठन किया गया। 10 सितंबर, 1946 से विभाग का नाम बदलकर पुन: सूचना और प्रसारण विभाग कर दिया। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन महानिदेशक, आकाशवाणी का विभागाध्यक्ष महानिदेशक है।
      भारत में प्रसारण को एक राष्ट्रीय सेवा माना गया है। स्वतंत्रता के पश्चात आकाशवाणी  ने काफी प्रगति की है। आज आकाशवाणी संसार का एक प्रमुख प्रसारण संगठन बन गया है। आकाशवाणी नेटवर्क में 406 ट्रांसमीटर सहित 231 प्रसारण केन्द हैं। जिनके माध्यम से देश के 91.85 प्रतिशत भू-भाग में 99.18 प्रतिशत लोगों तक आकाशवाणी के प्रसारण पहुँचते हैं। नैशनल चैनल 18 मई,1988 को प्रारंभ किया गया और दिल्ली से एफ॰ एम॰ चैनल पर 24 घंटे प्रसारण होता है। आकाशवाणी ने अब चौबीस घंटे इंटरनेट आधारित रेडियो सेवाएं भी देनी शुरू कर दी हैं ।
दूरदर्शन
     संसार में दूरदर्शन के बारे कई साल से हो रही खोजों के बाद वर्ष 1926 में सफलता मिली थी। स्काटलैंड श्री जॉन लोगी बेयर्ड (Sh. John Logie Baird) ने टेलिविज़न का आविष्कार किया था।  सन 1959 में जब आकाशवाणी प्रगति की और बढ़ रहा था। तब दिल्ली में सर्वप्रथम 15 सितंबर 1959 में टेलिक्लब्बों में देखने के लिए प्रयोगत्मक सेवा के रूप में दूरदर्शन का उद्घाटन किया गया था। 15 सितंबर, 1965 से दैनिक सामन्य सेवा प्रारंभ की गई। प्रारंभ में दूरदर्शन ने आकाशवाणी के एक भाग के रूप में कार्य करना शुरू किया। आकाशवाणी और दूरदर्शन का पहले एक ही निदेशालय आकाशवाणी निदेशालय था। लेकिन दिनांक 01.04.1976 से दूरदर्शन के अलग निदेशालय की स्थापना की गयी। अलग-अलग महानिदेशालय के बावजूद अभी भी दोनों विभागों के कई संयुकत कार्यों की देखभाल आकाशवाणी निदेशालय के पास हैं। दोनों विभागों के कई सामूहिक काम कर्मचारियों की वरियता सूची (seniority list) एक ही है। दोनों विभागों के तबादला और पदोन्नति पर कर्मचारियों को एक दूसरे विभाग में भेजने का प्रावधान अभी भी आकाशवाणी निदेशालय के पास है। वर्ष 1977 में दूरदर्शन का प्रसारण भारत के दूसरे  राज्यों में शुरू होने लगा था। वर्ष 1982 में भारत की राजधानी दिल्ली में एशियन खेलें आयोजित होने और टेलीविज़न पर रंगीन कार्यक्रम शुरू होने से दूरदर्शन की लोकप्रियता बढ़ने लगी। जल्दी ही दूरदर्शन का प्रसारण तेज़ी से बढ़ने लगा था। दूरदर्शन की बढ़ती लोकप्रियता को देखने से यह लगने लगा था कि आकाशवाणी का प्रसारण पीछे रह जाएगा और इसकी लोकप्रियता ख़त्म हो जाएगी। लेकिन ऐसा न हुआ क्योंकि रेडियो सैट सस्ते थे और आम लोगों की पहुँच में होने के कारण रेडियो प्रसारण पहले की तरह चलता रहा। जब कि टी॰ वी॰ सैट महंगे होने के कारण आम जनता की पहुँच से बाहर थे। दूसरा आकाशवाणी के प्रयत्नों और आधुनिकीकरण के कारण बढ़िया प्रसारण देकर अपनी लोकप्रियता बनाए रखी। उधर दूरदर्शन ने भी अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए पुर-ज़ोर कार्य किया। विभिन्न प्रकार के नए-नए दूरदर्शन चैनल व अन्तर्राष्ट्रीय चैनल चलने से वह अपनी लोकप्रियता बनाए हुये हैं। देश की 87% से अधिक लोग 1042 ट्रांसमीटर की मदद से दूरदर्शन के कार्यक्रम देख रही है। दूरदर्शन जो किसी समय आकाशवाणी का हिस्सा रहा था, वह अलग विभाग बनकर आकाशवाणी की तरह वह भी संसार का एक प्रमुख प्रसारण संगठन बन गया है। रेडियो और टेलिविज़न निसन्देह एक दूसरे के पूरक बन गए हैं।

आकाशवाणी और दूरदर्शन को प्रसार भारती के अधीन सौंपना
      भारत सरकार द्वारा 12-05-1990 को प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम ) अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम के पास होने पर यह दोनों विभाग जो कि पहले सूचना व प्रसारण मंत्रालय के तहत मीडिया  इकाइयों के रूप में काम कर रहे थे वह फिर इस अधिनियम के तहत प्रसार भारती के अंतर्गत हो गए। भारत सरकार द्वारा फिर समय-समय पर इस अधीनियम पर संशोघन किए गए। अधिनियम की संशोघन के तहत दोनों विभागों के सभी कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा वैसे ही रखते हुये उनको प्रसार भारती को प्रतिनियुकित पर दीमड (Deemed on deputation) पर स्थानांतरित कर दिये गए। लेकिन दोनों विभागों का कार्यभार प्रसार भारती के अधीन ही रहा। हालांकि अभी भी पूरा नियंत्रक केंद्र सरकार के पास ही है। संशोधन में यह दर्शाया गया की 05.10.2007 के बाद भर्ती होने वाले कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी के वर्ग में न रखते हुए वह प्रसार भारती के कर्मचारी होंगे।
      विज्ञान के यह चमत्कार आकाशवाणी और दूरदर्शन न केवल राष्ट्रीयता में भावातमक एकता ही पैदा करते हैं, बलिके अंत्र-राष्ट्रीय एकता पैदा करते में भी यह विशेष योगदान पा रहे हैं। आकाशवाणी और दूरदरर्शन द्वारा संचालित लोक प्रसारण के घटक हैं। पूरे देश में आज भी इन दो सेवाओं की अपनी एक अलग पहचान है। जहाँ कोई अन्य मनोरंजन और सूचना के साधन न हों वहाँ ये दो सेवाएं (AIR & TV) महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती हैं।  

      आकाशवाणी और दूरदर्शन की कार्य-प्रणाली समय-समय पर विभिन्न पृस्थितियो से गुजरने का इतिहास बहुत ही विचित्र और महत्वपूर्ण रहा है। यह दोनों विभाग सप्राण संभरण संगठन (living organism) रहे हैं। नवीन्तम और मुकाबले के इस युग के दौर में इनको और नए तौर-तरीकों को अपनाना पड़ेगा क्योंकि समाज कि जिन आवश्यकताओं को वह पूरी  करते हैं वे प्रतिदिन बदलती रहती हैं। बदलती हूई नई मांगों को पूरा करने के लिए इन संगठनों को निरंतर अपने आपको बदलते रहना होगा। ताकि प्रसारणों को और बढ़िया तरीकों से प्रस्तुत करके अपने चिन्ह बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय के लक्ष्य को पूरा करते हुए भारत का लोक प्रसारक बने रहें।
Email: jaswinderkainaur@gmail.com
This article may be readout at http://airddfamily.blogspot.in/2016/09/an-article-history-of-air-doordarshan.html
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Monday, May 9, 2016

Wednesday, March 23, 2016

Wish U A Happy Retired Life Sh. Rajesh Thakur AIR Chandigarh



Wish U A Happy Retired Life Sh. Rajesh Thakur !

Consequent upon his retirement on superannuation Sh. Rajesh Thakur, UDC, AIR, Chandigarh is retiring on superannuation on 31st March 2016. Sh. Thakur was born on  2nd March 1956 at  Shimla (Himachal Pradesh). The 20th day of the July 1977 was a special day in his life when he had joined  Govt. service as Lower Division Clerk, at Central Govt.’s Project i.e. Beas Construction Board, Talwara Township, Distt. Hoshiapur (Punjab).. On the completion of that Central Govt.’s project, he was re-deployed in this organization in CCW(Elect.) during January 1985 in the same capacity at Delhi. During his stay in the department, he was posted at  many places i.e. New Delhi, Leh & Chandigarh, & now he is retiring as UDC from CBS, AIR, Chandigarh. He always tried to perform his best for the department/nation. He had great learning experiences during his entire  service.  During discussion, he told that he has seen many rises & falls during his  service but always tried to perform his best, with the result he had always been getting full co-operation from his colleagues hence he would like to say that his retirement day i.e. 31st March 2016 is also a great day when he is retiring from Govt. service after completing  38 years 08 months & 11 days in the service.  He has got a Commendation Certificate from the Executive Engineer ©, AIR, Chandigarh towards his best service. He thanked all his colleagues & delivered a message for all to do their work honestly, maintain discipline & co-ordination for the welfare of the organization & the nation as a whole. On the day of his retirement on superannuation, we extends best wishes to Sh. Rajesh Thakur for happy and his future life.

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Sunday, February 21, 2016

Some snaps of Sh. Anand Prakash whose article is posted below.



Jaswinder Singh Kainaur
Finding Software Bugs in Facebook, Twitter & Zomato

From hacking into the social media accounts of his friends, to finding more than 90 security flaws for Facebook – Anand Prakash has come a long way with his love for technology and interest in ethical hacking. This is his story.
It was while preparing for his engineering entrance exams in Kota, Rajasthan that Anand Prakash first became interested in hacking. “I had a smart phone and Internet packs were very costly at that time. I came across some kind of proxy setting and figured out a way to use the Internet for free,” he says. The service provider rectified the loophole after some time when many users came to know about it. But for Anand, it was the beginning of a very eventful journey towards building a career in the field of hacking – the kind that’s ethical.
The information given by him is mentioning in italics in this article.
“What I do now is called security research, not hacking,” he is quick to correct.
Today, the 23-year-old is a security engineer with Flipkart, uses the Internet in a more responsible manner, and has been rewarded by many organizations for finding flaws in their software or technology setups.
Anand, who is from the town of Bhadra in Rajasthan, was always interested in computers.
“It was always the same with me. I used to score better in technical subjects, but when it came to subjects like geography, environmental studies, etc., I used to face a lot of problems,” he recalls.
As a student, Anand strengthened his newly acquired knowledge of hacking by experimenting among friends.
“I used to practice phishing on my friends’ accounts with their permission. It is the most basic process in hacking. It involves extracting information like usernames, passwords, etc., by sending out emails to the victims in a way that they will trust them enough to open the links,” he says. Getting access to the password of a friend’s Orkut account was Anand’s first hack.
After Kota, he joined Vellore Institute of Technology to pursue a course in computer science engineering. Anand continued to polish his knowledge about ethical hacking and different programming languages in college, and practiced whatever he learned among friends.
“Up till then, I only knew about hacking processes that involved using some automated tools. And that did not interest me after a point. Finding security flaws in systems is completely different from what I was doing then,” he says.
In the third year of college, Anand came to know about Facebook’s Bug Bounty Program. It offers recognition and compensation to security researchers who find vulnerabilities in Facebook and report them according to the organization’s responsible disclosure policy.
By then, Anand was well-versed in languages like PHP, JavaScript, etc.
“I liked to analyse codes. And when I learnt that Facebook has given monetary compensation to someone for finding a bug in their technology, I thought of giving it a try,” he says.
He utilised the Open Web Application Security Project (OWASP), which is an initiative by OWASP Foundation for the improvement of software security in different organizations around the world. The project provides users with open source study materials to understand  application security over the Internet.
“I started learning with the help of OWASP, followed experts on Twitter, and read up a lot about security research. Fortunately, I found a bug on Facebook in just a month. It was a loophole that enabled me to find people online even if they had turned off their chat,” he says. Anand received his first bounty of USD 500 for reporting this issue.
Then he learned that many such organizations welcome people who find security vulnerabilities for them. And the work turned out to be so interesting that there was no turning back for the technology enthusiast. To date, he has found about 90 bugs for Facebook, and ranks fourth in the Facebook wall of fame 2015.
The highest bounty Anand received from Facebook was a sum of USD 12,500 for finding a major security flaw because of which a user could post anything on his/her profile using someone else’s account. “For example, I could post a picture, a video, or text, and it would be visible on my Facebook wall as a post from your side,” he explains.
After college, he did an internship with the Cyber Police Investigation Branch of Gurgaon Police. There he worked on finding the different strategies used by cyber criminals.
He has also reported issues to companies like Twitter and Google and has earned Rs. 1.2 crore in the process. He was able to hack into the systems of the restaurant discovery and search application Zomato to gain access to the accounts of their 62 million users. He disclosed this issue to the company and they fixed it in two day, appreciating his efforts.
“I always first report the issue to the organization without exposing it elsewhere. It is called responsible disclosure. Then I take permission from them and post about it on my personal blog if they allow it.”
But Anand is not very happy about the way many Indian companies treat security researchers:
“Some companies are very responsive. They fix the bugs immediately and also give monetary compensation without much delay. But if you report bugs to many companies in India, they reply saying they will take legal action against you. The condition is very bad in terms of security here. But it is changing slowly. I have come across some companies that are now open to security research.”
With new technologies coming up every day, Anand’s hunger for learning keeps developing. His advice to those who want to pursue a career in security research: “Try and report bugs to companies in a responsible manner. And do not disclose the issue unless you have permission. Security research is a great thing if done ethically.”


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