A best play named
“JIWAN KA ANTIM CHHOR” translated in Hindi by Sh. Pradeep Vernekar
has been broadcast by Akashvani.
The author of this play are Sh. Pundalik Narayan
Nayak.
जीवन का अंतिम छोर
{नाटक}
{ बहते पानी की कलकल ध्वनि । तेज हवा । चिडियों के चहचहाने के स्वर }
वह : मैं आ गया हूँ ।
मालिक : आना ही था ।
वह : मैंने अखबार में तुम्हारा विज्ञापन पढा था ।
मालिक : सभी पढ़ते है ।
वह : मुझे लगा , तुम मुझे रास्ता दिखा सकते हो ।
मालिक : जरुर ! मेरा धंधा ही है यह ।
वह : { आश्चर्य से } धंधा .......
मालिक : जी हां । आज के युग में धंधे की सीमा काफ़ी विस्तृत हो गई है । जरुरत पड़ने पर कितने ही नये धंधे पैदा हो जाते है ।
वह : मै
जिन्दगी से बहुत निराश हो गया हूँ ।
मालिक : क्या
उम्र है तुम्हारी
वह : पच्चीस
साल ।
मालिक : तुम्हारी
तारीफ़ करनी चाहिए ।
वह : क्यो
मालिक : इस
संसार में मनुष्य बीस साल के अंदर ही निरास हो जाता है । पच्चीस साल का मतलब
........... तुम तो काफ़ी चल गये ।
वह : सचमुच
! मुझे भी ऐसा ही लगता है । मुझे आश्चर्य है कि मैं आज तक जिंदा कैसा हूँ ।
मालिक : इसका
उपाय मेरे पास है ।
वह : इसीलिए
तो मैं इतनी दूर चल कर आपके पास आया हूँ ।
मालिक : तुम्हारा
आना बेकार नहीं जाएगा ।
वह : एक
ही चक्कर में काम हो जाएगा , या दुबारा आना पडेगा ।
मालिक : बार
बार के चक्कर डॉक्टर और वकील लगवाते है । यहाँ तो पहला चक्कर ही आखिरी
चक्कर होता है ।
वह : तुम
तो धंवंतरी दीखते हो ।
मालिक : प्रभु
की लीला है ।
वह : फ़ीस
लेते हो न
मालिक : हर
इंसान को पेट पालना होता है ।
वह : हाँ
, इसी
पेट ने मुझे यह रास्ता दिखाया है ।
मालिक : नहीं
गलत । पेट यह रास्ता नहीं दिखाता । पेट तो समस्याएं पैदा करता है ।
वह : बिलकुल
ठीक । इसी पेट ने तो समस्या पैदा कर दी है कि मैं जिंदा रहूं या मौत की गोद मे चला
जाऊं ।
मालिक : बेरोजगार
हो
वह : पूरी
तरह बेरोजगार । दुख भुलाने के लिए सिगरेट भी पीना चाहूं तो मेरे पास उस तक के लिए
कानी कौडी नहीं है । लेकिन तुम्हारी फीस का प्रबंध मैने कर लिया है । कितनी होगी
मालिक : सब्र
करो । माना , यह
मेरा धन्धा है ,
लेकिन सिर्फ पैसा कमाना मेरा उद्देश्य नहीं है । दुखियों का दुख दूर करना ,
उनकी समस्याओं का समाधान करना ही मेरा असली कमाई है ।
वह : आज
के युग में ऐसा दृष्टिकोण रखना बडा मुशिकल है । आज तो जिधर भी जाओ वही धोखा है ।
मालिक : क्या
तुमने बहुत धोखे खाए है
वह : हाँ
। मेरी जीने की इच्छा मर चुकी है । सभी ढोंगी है । दिल करता है एक एक का
मुखोटा फाड फेकूं ।
मालिक : ठीक
। तुम्हे ऐसा करने से रोकता कौन है
वह : हाथ
छोटे पड़ते है ।
मालिक : हाथ
लम्बे कर लो ।
वह : { ठंडी
सांस भर कर } अगर
कमीज के हाथ होते तो क्या लम्बे किए जा सकते थे .......
मालिक : तुम
वाकई मेरे पास आने लायक हो । { रुककर }
तुम्हें किन किन ने धोखा दिया
वह : किन
किन का नाम लूं
सबसे पहले इस संसार में मुझे जन्म देकर मेरी माँ ने मुझे धोखा दिया ।
मालिक : सच
! इस संसार में तुम्हे जन्म लेना ही नहीं चाहिए था ।
वह : अब
एक तुम्हारा ही भरोसा है। मुझे विश्वास है तुम मुझे धोखा नहीं दोगे।
मालिक : विश्वास
ही मेरे धंधे की सफलता है । तुम्हारे लिए मैंने दूसरे संसार का इंतजाम किया है ।
वह : फ़ीस
पहले दूं या बाद में
मालिक : पहले
। लेकिन इतनी जल्दी नहीं ।
वह : दुनिया
में लोग तुम्हारी तरह स्पष्टवादी भी नहीं है ।
मालिक : परेशान
न हो । इस दुष्ट संसार के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद कर दिए जाएंगे ।
वह : इस
छ्ल और कपट भरे संसार में मेरे लिए , किसी ने कोई दरवाजा
नहीं खोला ।
मालिक : क्या
शिक्षा के दरवाजे तुम्हारे लिए नहीं खुले
वह : लेकिन
उससे मुझे लाभ क्या हुआ
मालिक : लगता
है तुमने बहुत दु:ख पाये है ।
वह : इस
संसार में दु:ख के अलावा और है ही क्या
मालिक : तो
फिर सुख कहाँ है
वह : { बात
काटते हुए }
तुमसे यही पूछने के लिए मैं यहाँ आया हूँ ।
मालिक : परेशान
मत हो । मैं सुख के दरवाजे तुम्हारे वास्ते हमेशा के लिए खोल दूंगा ।
वह : {
अधीरता से } मैं
और धीरज नहीं रख सकता ।
मालिक : तुम्हें
धीरज रखना होगा ।
वह : {
उत्सुकता से }
बहुत दिनों तक
मालिक : नहीं
।
वह : मेरा काम जल्दी हो जाए ,
उसके लिए मैं तुम्हे ज्यादा फीस देने के लिए तैयार हूँ ।
मालिक : उसकी
जरुरत नहीं है ।
वह : लेकिन
हर जगह ऐसा चलता है ।
मालिक : मुझे
मालूम है । लेकिन यहाँ यह सब नहीं चलता । यह जीवन का अंतिम छोर है ।
वह : {
आश्चर्य से }
अंतिम छोर
मालिक : जी
हाँ । बिलकुल अंतिम छोर ! यहाँ सभी दु:खो का अंत हो जाता है ।
वह : और
सुखों का आरम्भ होता है या नहीं
मालिक : तुम
पुनर्जन्म में विश्वास करते हो
वह : नहीं
।
मालिक : तो
यहाँ दु:खो का अंत हो जाता है , यही अंतिम सत्य है ।
{ कुछ
क्षणों की खामोशी , वह व्यथित होता है }
मालिक : तुम्हारे दिल में आशा की जो अंतिम चिनगारी
है उसे बुझा दो ,
वरना उस चिनगारी के साथ तुम्हारा दु:ख भी बढ जाएगा ।
वह : तुम
कहना क्या चाहते हो
मालिक : मैं
तुम्हारा भला करना चहता हूँ ।
वह : उसके
लिए मुझे क्या करना होगा
मालिक : {
कटघरे की ओर संकेत करते हुए } देखो , उधर
देखो । वह कटघरा तुम्हारे लिए तैयार है ।
वह : {
आश्चर्य से }
कटघरा
मालिक : {
दृडता से } हाँ
, मरण
कटघरा ।
{ पानी का बढता शोर वह चौंक जाता है }
मलिक : अरे
। जीवन के किस मोह के कारण तुम इतना चौंक गये
{ कदमो की आहट }
वह : इस
नदी के किनारे यह कटघरा क्यों बना रखा है
मालिक : दु:खभरी
जिंदगी से मुक्ति पाने के लिए ..........
वह : { आश्चर्य
से } आत्महत्या
करने के लिए ...........
मालिक : जी
हाँ ।
वह : यह
कैसा धंधा है
मालिक : मेरा
धंधा बडा साफ सुथरा है । इसमें कोई धोखेबाजी नहीं है ।
वह : तुम
लोगों से कहते हो कि इस कटघरे में कूद कर वे जान दें ।
मालिक : हाँ
! लेकिन उससे पहले मेरी फीस चुकानी होती है ।
वह : पैसे
देकर अपनी जान गंवाने वाले को पागल ही समझना चाहिए ।
मालिक : हाँ
! लेकिन कभी - कभी मनुष्य मौत के लिए भी दीवाना हो उठता है। तुम भी उपवाद नहीं हो
।
वह : लेकिन
मैं यहाँ जान देने के लिए नहीं आया हूँ ।
मालिक : यहाँ
आने वाला हर व्यक्ति शुरु मे ऐसा ही कहता है ।
वह : और
उसके बाद .........
मालिक : और
उसके बाद ,
अपनी इच्छा से उस कटघरे मे जाकर जान दे देता है।
वह : जान ही देनी है तो उसके लिए तो बहुत सारे
उपाय है । जहर खाया जा सकता है , कुएं मे कूदा जा सकता
है ,
रेलगाडी के नीचे गर्दन दी जा सकती है ।
मालिक : लेकिन
इन सब मे खतरा रहता है । समझ लो , तुमने जहर खा भी लिया
तो इसकी क्या गारंटी है कि तुम एक ही झटके मे खत्म हो जाओगे । आजकल जहर मे भी
मिलावट होती है। कुएं मे कूदना जितना आसान है , उतना ही आसान डूबते
हुए को बचाना है । ऐसे वक्त डूबने वाले को बचाने में लोगों को बडा आनन्द आता है ।
अब रहा रेलगाडी के नीचे गर्दन दे देना , यह भी ठीक नहीं
........ क्योंकि रेलगाडी ठीक समय पर आयेगी इसका क्या भरोसा ये सब उपाय बेकार है ।
लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है । इस मरण कटघरे से कूदे और खेल खत्म ..... {
बहते पानी की कलकल ध्वनि } मृत्यु एक पवित्र घटना
है । ऐसे समय मे आत्मा को वेदना पहुँचाना ठीक नहीं । मरण कटघरे से मरना सचमुच बडे
सौभाग्य
की बात है । इसीलिए मृत्यु की इच्छा रखने वाले अधिकांश व्यक्ति
यहीं आते है । जरा सोचो तो ............ कटघरे से कूदने बाद और पानी को छूने से
पहले ही अगर जान चली जाए तो तुम्हारे जैसा भाग्यशाली दूसरा कौन होगा
वह : लेकिन
मौत के बाद क्या होगा
मालिक : मौत
के बाद क्या होगा ,
मरने वाले व्यक्ति के लिए यह सवाल कोई महत्व नहीं रखता ।
वह : लाश
का क्या होगा
मालिक : उसकी
चिंता जिंदा रहने वाले करेंगे , तुम क्यों घबराते हो वैसे मरण कटघरे में
जाने वाले मनुष्य की लाश मिलती भी नहीं है ।
वह : क्यों
मालिक : नदी
की भंयकर मछलियां तो हड्डियां तक निगल जाती है ।
वह : इतने
प्यार और देखभाल से पाली हुई देह को मछलियों के मुंह मे दे देना बडे दु:ख की बात
है ।
मालिक : तुम्हारे
जीते जी तुम्हारे शरीर को भूखे कुत्ते नोचे , इससे बेहतर है कि
तुम्हारी लाश मछलियों के मुंह मे चली जाए । और फिर उस हालत में जब कि तुम जिंदगी
से तंग ............
वह : { बात
काटते हुए } हाँ
मैं इस संसार से तंग आ गया हूँ ।
मालिक : बात
एक ही है । इस दुनिया मे तुम्हारी देह के लिए जगह नहीं है । तो फिर मौत के बाद इस
देह का क्या होगा --- इसकी चिंता क्यो करते हो मैं तुम्हें उस महाकवि
की कहानी सुनाता हूँ जिसने जीवन भर मछलियों से बहुत प्यार किया । अंत में एक मछ्ली
का कांटा गले मे अटक जाने के कारण ही उसकी इस दुनिया से मुक्ति हुई । उसकी वसीयत
के अनुसार उसकी लाश नदी में मछ्लीयों के खाने के लिए फेक दी गयी । कितने ऊंचे
विचार थे उस महाकवि के । जिसके मांस पर उसकी देह पली थी , अंत में वह देह उन्ही
को सौंप दी गई । और ताज्जुब की बात है कि
जिन जिन लोगो ने वे मछ्लीयां खायी वे सभी कवि बन गये ।
वह : उस
महान कवि का नाम क्या था
मालिक :
कवि के जीवन की केवल घटनाएं ही याद रखी जाती है , उनके नाम और कविता
नहीं ।
वह : तुम
अनहोनी बात कह रहे हो ।
मालिक : तभी
तो इतनी दूर से लोग यहाँ आते है ।
वह : अखबारों
में छपे तुम्हारे विज्ञापन का अर्थ क्या है
मालिक : लगता
है तुमने विज्ञापन ठीक से नहीं पढा है
वह : पढा
है --- तुम्हे जान देनी है तो हमसे मिलिए
मालिक : तो
फिर
वह : मुझे
लगा आत्महत्या करने के इच्छुक व्यक्ति को तुम कोई रास्ता दिखाते होगे ।
मालिक : मैने
तुम्हें पहले ही बता दिया था कि मैं धंधे मे धोखाधडी नहीं करता । मेरा धंधा
बिल्कुल साफ है ।
वह : क्या
तुम्हारे पास इस धंधे का कोई लाइसेंस है
मालिक : बिना
लाइसेंस के भी तो बहुत सारे धंधे चलते है ।
वह : क्या
तुम जानते हो ,
आत्महत्या कानूनन जुर्म है
मालिक : आत्महत्या
करते समय बच गए तो जुर्म । मर गए तो मुक्ति ।
वह : क्या
तुम्हारे ऊपर खून का झूठा इल्जाम नहीं लगाया जा सकता
मालिक : कैसे
।
वह : पुलिस
को पता चल जाए तो ..........
मालिक : लेकिन
पुलिस इतनी दूर खून कत्ल के सुराग ढूढ़ने आएगे कैसे क्या उनके घरवार नहीं
है और
फिर हड़ताल ,
तालाबंदी और आंदोलनों को छोड़ कर पुलिस के पास यहाँ तक आने के लिए समय ही कहाँ है
वह : ठीक
कहते हो ।
मालिक : तो
फिर तुम जान कर अनजान क्यों बन रहे हो हाँ
एक बात और बता दो । आत्महत्या गुनाह है यह तुम्हे किसने बताया आत्महत्या का क्या
महत्व है पुलिस को क्या मालूम पल
भर के लिए समझ लो ,
कानून बनाने वालों की जगह अगर तुम होते तो क्या निर्णय लेते ,
बताओ
वह : मैं
आत्महत्या को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देता ।
मालिक : तो
तुम मानते हो न कि जो कानून , आत्महत्या को जुर्म
ठहराता है वह सदियों पुराना है ।
वह : इस
दुनिया में जन्म लेना और मरना दोनो ही गुनाह है ।
मालिक : बीती
हुई बातों को याद करके मन को अशांत न करो । मन को शान्त करो । अब तुम एक नये संसार
मे प्रवेश करने जा रहे हो ।
वह : {
घबराकर }
नहीं नहीं ............ मैं इस कटघरे से कूद कर जान नहीं दे सकता
.................
मालिक : {
समझाते हुए }
पागल न बनो । यह सामान्य कटघरा नहीं है । { पानी के बहने का शोर ,
चिडियों के चहचहाहट } यह
नये संसार का प्रवेश द्वार है । देखो , वहा कुछ क्षण खडे होकर
देखो और सोचो । ऊपर खुला आकाश तुम्हें आशीर्वाद देगा । नदी के किनारे लगे वृक्षों
की शाखाएं हिल हिल कर तुम्हें अंतिम विदा देगी । चिडिया चहचहा कर तुम्हारी
आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करेंगी और नीचे बहता हुआ नदी का नीला जल माँ की
ममता की तरह तुम्हें अपनी गोद में भर लेगा ।
{
पानी की आवाज उभरती है }
वह : {
घबराकर }
नहीं ...... नहीं ........ मुझे मरने पर मजबूर मत करो । तुम अपनी फीस ले लो
.......... मुझे नही मरना है ..........
मैं मरना नहीं चाहता । तुम अपनी फीस ले लो ।
मालिक : यह
कालेज नहीं जहाँ पढाई का टर्म पूरा किए बिना भी फ़ीस वसूल कर ली जाती है । इस मरण
कटघरे पर कोई जालसाजी नहीं होती । अगर तुम मरना नहीं चाहते हो तो तुम वापस जा सकते
हो .........
वह : सच
मालिक : हाँ
। मैने तुम्हें गिरफ्तार थोडे ही किया है ।
वह : {
जाने लगाता है , फिर
रुक कर }
लेकिन तुम्हे डर नहीं लगता
मालिक : कैसा
डर
वह : यही
कि मैं तुम्हारी बातें सबको बता दूंगा ।
मालिक : इसमे
काहे का डर
अच्छा है मुफ्त मे मेरा प्रचार होगा ।
वह : फिर
भी अगर कानून के अनुसार ............
मालिक : उसके
बारे मे मैं तुम्हे पहले ही बता चुका हूँ ।
वह : मेरा
मतलब वह नहीं था । जरा सोचो , मेरे जैसा नौजवान
तुम्हारे इस गैर कानूनी धंधे के खिलाफ़ आवाज तो उठा ही सकता है । इसका तुम्हें डर
नहीं है
मालिक : {
हंसता है } तुम
और नौजवान
तुम्हारा शरीर भले ही जवान हो , दिल बूढे का है । अगर
तुम्हारे अन्दर अत्याचार के खिलाफ़ आवाज उठाने की हिम्मत होती तो तुम यहाँ आते ही
क्यों तुम
जहां रह रहे थे वहाँ क्या
कम
अन्याय था तुम
उस अत्याचार की आग में चुपचाप झुलसते रहे । तुम्हारी विद्रोही आत्मा कहाँ थी तब जिसकी आवाज ही बैठ गई
हो वह आवाज कैसे उठायेगी अगर
तुम्हारे जैसे नौजवान पैदा ही नहीं होते तो इस मरण कटघरे की जरुरत ही क्या थी ।
वह : {
निराशा से जाते हुए } मैं
........ चला ..............
मालिक : ठीक
है । चले जाओ ........ जहां से आए हो वही चले जाओ । सुख शांति से रहो ।
वह : सुखी
रहूं .......
वहां सुख नहीं है ।
मालिक : ऐसा न कहो । वहां सुख की नदीयां बहती है ।
वह : सुख
की नहीं , जहर
की कहो ।
मालिक : वहां
तुम्हारे लिए मान मर्यादा है । प्रतिष्ठा है ।
वह : सब
झूठ है । वहां मनुष्य की नहीं , पैसो की प्रतिष्ठा है
। प्रतिष्ठा है जानवरों की । विदेशी कुत्तों को मनुष्य की गोद नसीब होती है । जबकि
पीडा पाते हुए व्यक्ति गंदी नालियों मे दम तोड देते हैं । उन पर किसी को दया नहीं
आती । इस देश मे सुख चैन से जीने के लिए मनुष्य को विदेशी कुत्ते का जन्म मिलना
चाहिए ।
मालिक : तुम्हें
अपनी मर्जी का काम काम मिलेगा ---- जब और जहां चाहो ।
वह : झूठ
। बिलकुल झूठ । नौकरियां बहुत है , लेकिन वो जरुरतमंदो को
नहीं मिलती ।
मालिक : मिलती
है ।
वह : {
चिढकर }
नहीं मिलती । तुम मुझसे ज्यादा नहीं जानते । मैं उसी नरक से बार बार गुजर
कर आया हूँ ।
मालिक : नौकरी
के लिये योग्यता भी तो चाहिए ।
वह : नहीं
,
नालायकी कहो ।
मालिक : तुम
असफल रहे होगे ............. इसलिए ऐसा कहते हो ।
वह : एक
बार नहीं । असफलता तो जन्म जन्मांतरों से हमारे साथ लगी है ।
मालिक : कितनी
जोडी जूते घिसे ।
वह : एक
भी नहीं । जूते लिये ही कहां जो घिसते । हाँ , पाव के तलवे जरुर घिस
गए ।
मालिक : अपना
एकाध अनुभव तो बताओ ।
वह : अनुभव
तो कहानी जैसा है ।
मालिक : अच्छा
कहानी के राजकुमार ,
अपने इस इंटरव्यू की कहानी तो सुनाओ ।
वह : यह
जिंदगी का आखिरी इंटरव्यू था । मैं सोच कर भी यही गया था । पहला ही मेरा नाम था ।
अंदर गया । सामने देखा तो कोई नहीं था । बैठ गया । थोडी देर बाद मैनेजर नाम का
सूटेड बूटेड एक प्राणी सामने आकर बैठ गया । मैने उसे किस तरह चकरघिन्नी
बनाया ,
क्या बताऊं ..
{ संगीत के साथ फ्लैशबैक
आरम्भ }
मैनेजर : { रोब
से }
तुम्हारा नाम
वह : {
मुड़्कर }
निर्बुद्ध ।
मैनेजर : कहां
तक पढे हो
वह : {
मुडकर }
निपट अनाडी ।
मैंनेजर : तुम्हें
सुनाई देता है
वह : कान
में डालने के लिए सरसों का तेल हो तो थोडा सा दे दीजिए ।
मैंनेजर : कौन
से गांव के रहने वाले हो
वह : {
मुड़कर }
तुम्हारे ससुराल के ।
मैनेजर : रहते
कहां हो
वह : तुम्हारे
बेड़रुम में
।
मैनेजर : आजकल
क्या करते हो
वह : {
मुड़कर }
आपकी पत्नी की सेवा ।
मैनेजर : तुमने
मेरे एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया ।
वह : {
मुड़कर }
जैसे आपको मुझे नौकरी देने में कोई दिलचस्पी नहीं है , उसी तरह मुझे भी आपके
सवालों के जवाब देने में दिलचस्पी नहीं ।
मैनेजर : फिर
यहां आये किसलिये हो
वह : {
मुड़कर } और
नौकरियों की तरह यह नौकरी भी मुझे नहीं चाहिए , ये बताने के लिये ।
मैनेजर : इस
काम के लिये कितने बरसों का अनुभव है
वह : {
मुड़कर } नौ
महीने का । माँ के पेट से सीख कर आया हूँ ।
मैनेजर : इस
नौकरी के लिये अर्जी देने का कारण
वह : मजाक
सिर्फ तमाशबीनी ..........
मैनेजर : आजकल
हमारे प्रधानमंत्री कौन है
वह : तुम्हारे
बाप ।
मैनेजर : हमारी
आधुनिक विदेश नीति के बारे में तुम्हारी क्या राय है
वह : क्या
विदेश मंत्री की जगह खाली है
मैनेजर : भारत
पाक सम्बंधो के बारे मे क्या सोचते हो
वह : मैं
अपने और तुम्हारे सम्बंधों के बारे में बताऊ
मैनेजर : हमारे
तिरंगे झंडे में कितने रंग है
वह : सात ।
मैनेजर : तुम
यहां इंटरव्यू देने आये हो या हमारा मजाक उडाने एक भी सवाल का ठीक
जवाब तुमने नहीं दिया । यहां तुम जैसा कोई भी बेकार नहीं । क्या दिखाई नहीं देता ,
बाहर इतने लोग लाईन में खडे है । तुम्हें जरा भी तमीज नहीं । नौकरी ऐसे ही फोकट
में नहीं मिलती है । हमारे पास फालतू बातों के लिए वक्त नहीं है । चलो हटो
...........
वह : {
मैनेजर की तरफ आवाज करते हुए } नहीं जाऊंगा ।
मैनेजर : मजाक
बंद करो ।
वह : तुम
भी अपनी बकवास बंद करो । मै मजाक कर रहा हूँ या तुम इंटरव्यू का ढोंग रच
रहे हो । तुम्हारे इस मुखौटे के पीछे क्या छिपा है , ये पता है मुझे । तुम
मुझे बेकार कहते हो । तुम मेरी तरह बेकार नहीं हो । मैं ही बेकार हूँ , तभी
तो कितने सालो से ऐसे दफ्तरो की सिढियां नाप रहा हूँ । तुम मुझे नौकरी दे रहे हो दे सकते हो कैसे दे सकते हो नौकरी किसे देनी है वह
तो पहले ही तय है । हमें पता है नौकरी मुफ्त में नहीं मिलती । उसके लिये जेब भारी
करनी पड़ती है । जैसे दाम वैसा काम । ठीक ठीक बताओ । कितनी रकम चाहिए किसकी जेब भरनी है कौन कौन हकदार
है पहले यह सब बताओ । हो सका तो हम वैसा ही करेगे । उसके बाद ही इंटरव्यू देने
आयेगे ।
इंटरव्यू का
नाटक रच कर तुम किसकी आंखो मे धूल झोंकना चाहते हो हमारी सहनशीलता की
सीमा देखना चाहते हो
निर्लज्जता आजमाने के लिये सवाल पूछना चाहते हो । नाम , गांव ,
शिक्षा आवेदनपत्र में जो लिखा है , वह सब क्या है डिग्री के सर्टिफिकेट
भी साथ लगे है । फिर ये सब सवाल क्यों
तिरंगे झण्डे में कितने रंग होते है । तिरंगे झण्डे में तीन रंग होते है । पहला
मेरे अनबहे खून का ,
दूसरा मेरे अनखिले खेत का जिसमें कभी
फसल नहीं उगी । और तीसरा उस
रोशनी का ,जो
कभी जीवन में नहीं फैली ।
मैनेजर : {
गुस्से से } गेट
आउट ।
वह : {
चिल्ला कर } यू
गेट आउट फर्स्ट .......
{ संगीत फ्लैशबैक समाप्त
}
मालिक : तो
मैनेजर को तुमने अच्छी चकरघिन्नी दी ।
वह : क्या
फायदा
नौकरी न देकर उसने उल्टा मुझे ही चक्कर में डाल दिया
मालिक : झगडा
किये बिना कुछ नहीं मिलता ।
वह : मैने
झगडा किया । मुझे क्या मिला
मालिक : अकेले
झगडे से क्या फायदा
वह : सब
को अपनी अपनी पडी है । जब अपने घर में आग लगती है तब सब बाहर आकर शोर मचाते
है ,
लेकिन जब वही सब दूसरों पर बीतती है तो घर के दरवाजे बंद करके अंदर बैठ जाते है ।
मालिक : क्या
तुम इसके अपवाद हो
वह : मैं
क्यों होंऊगा
{ मालिक की हंसी }
वह : तुम
हंस रहे हो
मालिक : तो
फिर क्या रोऊ
वह : व्यक्ति
का अपना दु:ख कोई दूसरा नहीं समझ सकता -
यह सच है ।
मालिक : नहीं
मैं तुम्हारा दु:ख समझता हूँ ।
वह : तो
फिर हंस क्यो रहे थे
मालिक : मैने
एक बार सुना था ....
वह : क्या
मालिक : हंसने
से मनुष्य की उम्र बढती है ।
वह : तुम्हारा
तो वही हाल है ,
किसी का घर जले और तुम कहो कि जरा हाथ सेक ले ।
मालिक : कहो
! तुम क्या कहना चाहते हो
वह : सच
बताऊ तो इस वक्त तुम्हारा कर्तव्य मुझे धीरज देना था ।
मालिक : लेकिन
मैने तो तुम्हें मार्ग दिखाया है ।
वह : कैसा
मार्ग
मालिक : मरण
कटघरे का ।
{ पानी का शोर । कुछ देर
के लिए दोनो की खामोशी }
मालिक : चलो
! वापस अपने संसार मे चले जाओ । सर्विस नहीं भी होगी तो वह तो होगी ।
वह : {
चौंक कर वो } वो कौन
मालिक : तुम्हारी
प्रेमिका ....... बिलवेड ।
वह : तुम्हें
कैसे पता
मालिक : अनुभव
से ।
वह : तुमने
कभी किसी से प्यार किया है
मालिक : मैं
केवल दूसरों की मौत से प्यार करता हूँ ।
वह : तो
फिर तुम्हें कैसे पता चला ।
मालिक : मैने
सुना है --- कालेज की पहली सीढी पर कदम रखते ही युवक प्यार की दो सीढियां चढ जाते
है ।
वह : तुम
ठीक कहते हो । {
ठंडी सांस भर कर उदास स्वर में } हमारा क्या हुआ पता है
मालिक : जो
हिंदी फिल्मों मे होता है ।
वह : सब
झूठ ।
मालिक : क्या
वह : फिल्में
झूठी ,
लेकिन हमारा प्यार सच्चा है ।
मालिक : अच्छा
, सब
कुछ बताओ ।
वह : सुनो
, वह
हमारी पहली मुलाकात । कालिज का आफिस । एडमीशन काउंटर पर फार्म भरने के लिए लडके
लडकियों की भीड । सभी अपने अपने विचारों मे उलझे हुए । मैं एक कोने
में खडा । भीड कम होने का इंतजार करता हुआ । इतने मे एक लडकी ने हल्के से मेरे
कंधे को उंगली से छूकर कहा ..............
मालिक :
एक्सक्यूज मी । वील यू प्लीज गिव मी युवर पेन
वह : एक्जैक्टली
। तुम्हें कैसे पता
मालिक : बहुत
आसान है । पेन छोड कर लडकी के पास सभी चीजें होती है ।
वह : मैने
फौरन जेब से पेन निकाल कर उसे दे दिया ।
मालिक : जैसे
कलेजा दे दिया हो ........
वह : तुम
बडी रंगीन तबियत के मालूम होते हो ।
मालिक : प्रेमस्य
कथा रम्यम् ।
वह : पेन
तो दे दिया ,
लेकिन दिल मे धक धक होने लगी । पेन चल नहीं रहा था।
मालिक : नया
था
वह : नया
ही । लेकिन बहुत दिनों से इस्तेमाल नहीं किया था । उसने कैप खोली । मुझे लगा जैसे
मेरे दिल का ढक्कन खुल गया । निब ने फार्म पर लिखना चाहा । मैं थोडा झुका ।
दुर्भाग्य से पेन चल नहीं रहा था । एक बार झटका दो बार झटका । और मेरी ओर देखा उफ्
......... वो नजर ......... मैं झेप गया । उसने पेन तीसरी बार झटका और आश्चर्य पैन
चलने लगा । { पाज
} और
तुम जानते हो ,
तबसे मैं हर काम मे तीसरा मौका ही ढूंढता हूँ । पहले साल फेल हो गया । दूसरे साल
फिर वही बात । लेकिन निराश नहीं हुआ । तीसरे साल इम्तहान में बैठा और वही चमत्कार
......... आसानी से पास हो गया । लेकिन पास हो जाना कोई महत्वपूर्ण बात नहीं थी ।
हाँ , तो
मै पैन के बारे मे बता रहा था । उसने मेरे पैन से मेरा नाम लिख दिया । मैं धन्य
हुआ । मुझे लगा जैसे मेरा लाना सार्थक हुआ ।
मालिक : क्या
सार्थक हुआ ।
वह : पेन
का लाना । वैसे अक्षर कोई खास सुन्दर नहीं थे ।
मालिक : सुंदर
लडकियों की लिखाई खराब होती है ।
वह : हाँ
हाँ । सच । और तुम जानते हो --- मैने उसे सर्वस्व दे दिया ।
मालिक : मतलब
तुम्हारे सर्वस्व का कितना हिस्सा
वह : मजाक
नहीं । तब मेरे पास बस एक पैन ही था । बाकी सब कुछ ---- यानी कपडे और किताबें ---
पिताजी की कमाई के ही थे । तुम जानते हो एक धर्म संस्थापक ने
.......... मुझे उसका नाम मालूम नहीं है , क्या कहा है ----
जो अपना सर्वस्व देता है , वह सच्चा दान करता है
मालिक : उसने
पेन वापस नहीं लौटाया
वह : यही
तो मजे की बात है । पेन देना वह भूल गई । और क्या भूल गई वह भी मुझे पता नहीं ।
मालिक : और
क्या भूली
वह : शायद
अपना दिल मेरे पास छोड गई । आगे की पूरी प्रेम कहानी उस पेन ने लिख डाली ।
मालिक : पेन
की स्याही कहाँ खत्म हुई।
वह : क्या
मतलब
मालिक : प्रेम
भंग कब हुआ
वह : निराशा
से मेरा प्रेम भंग हुआ ।
मालिक : क्या
प्रेम दोनो ने ही किया था ।
वह : किया
था । फिर भी प्रेम भंग मुझ अकेले का हुआ । उस दिन हमेशा की तरह , हम
लोग उसी जगह पर मिले ।
{ संगीत ---- फिर
फ्लैशबैक आरम्भ }
लडकी : इन्टरव्यू
का क्या हुआ
वह : हमेशा
की तरह ही हुआ ।
लड़की : इतनी
आसानी से कह रहे हो ।
वह : तो
फिर क्या झूठ बोलूं
लडकी : बोलने
लायक तुम्हारे पास कुछ भी नहीं ।
वह : बोलो
नहीं ।
लडकी : बिना
बोले समस्या हल नहीं होगी ।
वह : तो
फिर बोलो । क्या बात है
लड़की : अभी
भी मजाक मैं गम्भीर हूँ ।
वह : तो
मैं क्या करुं
लडकी : घर
में मेरे ब्याह की बात चल रही है ।
वह : किस के साथ
लडकी : मेरा
ब्याह किस के साथ हो --- यही तो बात चल रही है ।
वह : फिर
लडकी : फिर
क्या
पिताजी ने मुझसे पूछा मेरे मन में क्या है
वह : तुमने
क्या जवाब दिया
लड़की : तुम्हें
क्या लगता है
क्या जवाब देना चाहिय था
वह : पिताजी
को मेरा नाम बता देना चाहिए था ।
लड़की : मैने
नहीं बताया ।
वह : क्यों
लड़की : यह
मुझ से पुछते हो
अपने मन से पूछो ।
वह : लेकिन
मुझमें ऐसी क्या कमी है
लड़की : आज
ही क्या । कमी तो हमेशा ही रही है ।
वह : {
ताजुब से } क्या
लड़की : तुम्हारी
बेरोजगारी ।
वह : लेकिन
तुम्हें शादी मुझसे करनी होगी ।
लड़की : और
खाऊंगी क्या जहर
वह : यह
बात जानने में तुम्हें इतने साल लग गये
लड़की : ज्ञान
का साक्षात्कार देर से ही होता है ।
वह : वह
ज्ञान है या व्यवहार
लड़की : व्यावहारिक
ज्ञान ।
वह : हमने
जो कसमे कसमे खाई थी
लड़की : कौन
- सी कसमें
वह : उस
पहाड़ी के ऊपर टूटे मंदिर में खाई हुई कसमें हम एक दूसरे को कभी
नहीं छोड़ेगे ।
लड़की : वह
बात अब नहीं रही । वह पहाड़ी भी अब पहले जैसी नहीं रही और क्या तुम जानतें नहीं कि
वह मंदिर अब टूटा हुआ नहीं है । रेत और सीमेंट से वह नया ही मंदिर बना दिया गया है
।
वह : मेरे
लिए तो टूटा हुआ मंदिर ही शेष है ।
लड़की : तुम्हारे
विचार बहुत पुराने है ।
वह : यह
तुम्हें अब पता चला
लड़की : हो
सकता है ----- पहले भी मुझे पता हो ।
वह : तो
फिर कहां क्यो नहीं
लड़की : यही
समझ में नहीं आता ।
वह : मेरी
समझ में सब आता है ।
लड़की : क्या
वह : तुम
उगते सूरज को नमस्कार करना चाहती हो ।
लड़की : क्या
मतलब
वह : हमने
इतना प्यार किया ।
लड़की : इस
बात की तो तुम्हे खुशी होनी चाहिए ।
वह : खुशी
क्यो
लड़की : एक
बेरोजगार व्यक्ति से मैं इतने दिनों तक प्यार करती रही ।
वह : मजनू
भी बेरोजगार था ।
लड़की : तब
हवा ही कुछ और थी । तब हवा से ही पेट भर जाता था ।
वह : सच
कह रही हो । तब हवा ही अलग थी ---- शुद्ध । अब तो हवा भी दूषित है । अब तो इस बात
का भी भरोसा नहीं कि किसी की सांसो से विकार पैदा नहीं होगा ।
लड़की : हाँ
,
नहीं है ।
वह : मैं
तुम्हारे बारे में कह रहा हूँ । तुमने मुझे धोखा दिया है ।
लड़की : कितनी
जोर से चिल्ल रहे हो ।
वह : तुम्हें
मेरी चिंता करने की जरुरत नहीं ।
लड़की : तुम्हारी
नहीं , मैं
अपनी चिंता कर रही हूँ ।
वह : स्वार्थी
।
लड़की : इसी
तरह तुम भी स्वार्थी हो ।
वह : क्या
मतलब
लड़की : बेकार
होते हुए भी मुझसे शादी करना चाहते हो। क्या यह स्वार्थ नहीं है
वह : बस
भी करो । बेकार ! बेकार ! बेकार ! .......... जैसे मैं अस्पृश्य हूँ । पीडित हूँ ।
महारोगी हूँ ! समाज में लगा हुआ घुन हूँ ........... बेकार मानो नालायक ......
नपुंसक
लड़की : मैंने
तो तुम्हे नपुंसक नहीं कहा ।
वह : और
कैसे कहोगी
लड़की : अब
मैं जाऊं
वह : पूछना
जरुरी है
लड़की : हाँ
। क्योंकि अब दुबारा तो पूछना है नहीं --- इसीलिए ...........
वह : ऐसा
कह कर मेरे मन को मायापाश में मत जकड़ो ।
लड़की : मन
कड़ा करो ।
वह : मेरे
लिए कम से कम यही दुआ मांगो ।
लड़की : अवश्य
मांगूगी ,
मैने भी तुमसे प्यार किया था । लेकिन वह वास्तविकता की चौखट में फिट नहीं बैठ पाया
। आई एम सारी ...........
{ संगीत ----- फ्लैशबैक
समाप्त }
मालिक : तुम
अब पहले जैसे इंसान नहीं रहे ।
वह : ठीक
कहते हो । इंसानियत आज गिरती जा रही है । जिंदा है सिर्फ धरती ,
पर्वत ,
पेड़ और पौधे .............
मालिक : और
पानी ।
वह : मुझे
प्यास लगी है ।
मालिक : काहे
की
वह : काहे
की पानी की ।
मालिक : अच्छा
..... मैं तो समझा था । मौत की प्यास लगी है । यह प्यास बहुत असहनीय है । बहुत ही
तीव्र है ।
वह : मैंने
तुम्हें पहले ही बताया था ---- मुझे मरना नहीं है ।
मालिक : जी
कर क्या करोगे
वह : मालूम
नहीं ।
मालिक : जीने
की इतनी इच्छा तो मैंने कभी नहीं देखी ।
वह : मुझे
संसार में क्या मिला है ।
मालिक : दु:ख
!
वह : हाँ
,
केवल दु:ख के अलावा मुझे और कुछ भी नहीं मिला ।
मालिक : और
कुछ मिलना संभव भी नहीं है ।
वह : क्यों
मालिक : जो
है नहीं , उसे
कहां ढूंढोगे
वह : तो
फिर मैं करुं भी तो क्या
मालिक : वह
तुम्हारा इंतजार कर रहा है -------- मरण कटघरा ।
वह : नहीं
.... नहीं ..... {
पानी बहने का शोर }
मालिक : छी
.... निर्लज्ज ! समाज ने तुम्हें इतना हीन माना । सैकड़ो आफ़िसों की सीढियां चढे ,
उतरे ,
लेकिन किसी ने नौकरी नहीं दी । तुम्हारा दु:ख देख कर किसी का भी दिल नहीं पसीजा ।
दिल की गहराई से जिस लड़की को प्यार किया , उसने भी तुम्हे क्या
दिया
दुनियादारी के आगे उसने हार मान ली । प्रेम का बन्धन क्या केवल तुम अकेले का ही
टूटा
नौकरी के बिना तुम्हारी भूख का कोई मूल्य नहीं , और दिल में प्यार होते
हुए भी तुम्हारे दिल की कोई कीमत नहीं । अब बचा भी क्या है । मनुष्य इस संसार में
और किन बातों के लिए जिंदा रहता है
{ कुछ क्षणों के लिए
दोनों की खामोशी }
मालिक : जिंदा
रहने की इच्छा सिर्फ एक कारण से ही बढ़ सकती है ।
वह : किस
कारण से
मालिक
: ऐसे वक्त में अपना ही खून
मददगार साबित हो सकता है । { पाज }
तुम्हारी माँ है
वह : नहीं
मालिक : पिता
वह : है
।
मालिक : तो
फिर पिता के ही कारण तुम्हारे कदम मरण कटघरे से पीछे हट रहे है
वह : नहीं
।
मालिक : हो
सकता है --- ऐसे समय वही तुम्हारे आंसू पोंछ सके ।
{ संगीत उभरता है -----
फ्लैशबैक आरम्भ }
पिता : कम
से कम यह सर्विस तो मिलने की उम्मीद है
वह : निश्चित
रुप से नहीं ।
पिता : यह
कौन सी मर्तबा है
वह : याद
नहीं
पिता : क्या
याद है
{ वह चुप रहता है }
पिता : घर
वापस लौटना याद रहता है
वह : क्या
करुं
पिता : एक
बेकार व्यक्ति से पुछ रहा है कोई
भी धंधा करो ।
वह : उसके
लिए पूंजी चाहिए ।
पिता : पहले
तो अक्ल चाहिए ।
वह : किस
को लूटूं ।
पिता : तुम
किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम सिर्फ मुझे ही लूट सकते हो ।
वह : सुबह
आप की जेब में से दो रुपय निकाले थे ।
पिता : सारे
निकाले थे ।
वह : नहीं
। सिर्फ दो रुपये ।
पिता : हाँ
, दो
रुपये । केवल वही तो बचे थे । अब मैं किसको लूटूं यह बताओ कहां तक बर्दाश्त करुं
मेरी कमाई पर तुम कब तक जिंदा रह सकते हो जब तुम पैदा हुए थे तब
कितनी खुशी हुई थी । घर का चिराग रोशन हो गया । बाप की देख भाल करने के लिए
बेटा आ गया है । भविष्य की आशा ! कैसी कैसी कल्पनाएं की थी । तुमने सब
मिट्टी में मिला दीं । तुम्हारे लड़खडाते पैरों में कोई सामर्थ्य नहीं । इतना
दुर्बल मन ! मनुष्य है तू ऐसा
दुर्बल व्यक्ति ,
मैंने अपनी जिंदगी में दूसरा नहीं देखा ।
वह : मैं
आपका बेटा हूँ ।
पिता : मैंने
कब इन्कार किया यह
मेरा भाग्य है ।
वह : आपकी
वेदना मैं सझता हूँ ।
पिता : वेदना
समझने से क्या होता है
जरुरत है उस उपाय की ,
जिससे वेदना मिट जाये । तुम्हें मैंने पढाया , यह अच्छा नहीं किया
वह : क्यो
पिता : तुम
पढे लिखे नहीं होते तो जो भी काम मिलता कर लेते । कैसी दुर्बुद्धि जागी मुझमें जो
तुम्हें पढाया । { पाज
} और
जब तुम्हे डिग्री मिली तब तो मेरे भाग्य ही फूट गए ।
वह : इस
डिग्री का क्या फ़ायदा
पिता : तभी
तो कहता हूँ डिग्री नहीं चाहिए थी । बेटे के पास डिग्री है ----- यह मैं किस मुंह
से कंहू । ऊपर से तुम इश्क करने से भी बाज नहीं आए ।
वह : वह
सब अब खत्म हो गया ।
पिता : यानी
वह : ऐसा
अब कुछ नहीं है । मैंने प्यार छोड दिया ।
पिता : प्यार
छोड दिया या उसने तुम्हे छोड दिया ।
वह : आपको
कैसे पता चला
पिता : बाप
हूँ । इसीलिए दुदैब से सभी किस्से मुझे पता चल जाते है । अच्छा ही किया उस छोकरी
ने । दिमाग से काम लिया । भला हो इस जमाने का । पर किया क्या था उसने
वह : मुझे
चिढाने लगी ।
पिता : वह
या परिस्थिति
वह : भगवान
भला करे उसका ।
पिता : भला
तो होगा ही । उसका तो ब्याह भी हो चुका ।
वह : किसके
साथ
पिता : कल
तुम जिस सर्विस के लिए इन्टरव्यू देने गए थे , वह सर्विस जिस लडके को
मिली उसी लडके के साथ ।
वह : सर्विस
तो पहले ही मिल चुकी थी ।
पिता : हाँ
। और सर्विस मिलने के फौरन बाद ही लड़की भी मिल गई ।
वह : अपना
अपना भाग्य ।
पिता : तुम
भाग्य ही पर भरोसा किए बैठे रहो । लोग यहां भाग्य भी बदल देते है।
वह : मेरे
भाग्य ऐसे नहीं ।
पिता : घातक
रोग होने पर मरीज को दूसरों से दूर रखा जाता है ।
वह : मैं
क्या करुं ।
पिता : बार
बार यह सवाल पूछ कर मेरा दिमाग खराब मत करो ।
वह : आठवी बार बताओ मैं क्या करुं
पिता : यह
तो सबित हो ही गया है कि न तो तुम अपने बाप का पालन पोषण कर सकते हो और न
ही अपनी गृहस्थी बसा सकते हो । ऐसी हालत में कम से कम मेरे सर का बोझ तो हमेशा के
लिए हल्का कर दो । ढेर सारे उपाय है । ढेर सारे । { पिता चला जाता है }
{ संगीत के स्वर उभर कर
फेड आउट होते है फ्लैशबैक समाप्त }
मालिक : { घृणा
भरे स्वर में }
धिक्कार है ऐसी जिंदगी पर । कहीं भी , किसी ने भी तुम्हें
जीने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया । इसके बाद भी तुम इस निकृष्ट जीवन से प्यार
करते हो इस
कीचड में क्या सुख है इस
घटिया जिंदगी से तुम्हें इतना लगाव किसलिए तुम इससे कबकी मुक्ति
पा सकते थे । परंतु तुम दुर्बल हो । शक्ति हीन । तभी पीछे हट रहे हो ।
सचमुच तुम अभागे हो । मरने के कितने मौके गंवा दिये तुमने मुझे लगता है ----
यह तुम्हारे लिए आखरी मौका है । तुम्हारे जन्मदाता पिता ने भी तुम्हें मृत्यु का
ही मार्ग दिखाया । अगर अब भी उस रास्ते पर नहीं चलोगे तो तुम्हारे जैसा भाग्यहीन
दूसरा कोई नहीं होगा ।
वह : मुझे
प्यास लगी है । मुझे जरा सोचने दो ।
मालिक : इस
आखिरी समय में सोचना क्या आज
यह मौका हाथ से गंवाया तो जिंदगी भर पछताओगे । सिर धुनोगे । रातों को चुपचाप आंसू
बहाओगे । इस संसार में एक कीडे की तरह जीना पडेगा ।
वह : {
किंकर्तव्यविमूढ }
मुझे प्यास लगी है ।
मालिक : चलो
आगे बढो । इस सुनहरे मौके को मत गंवाओ । { पानी का शोर }
देखो , यह
मरण कटघरा तुम्हारा स्वागत करने के लिए तैयार है । सुनो , नदी की लहरों की पुकार
सुनों । लहरे --- जो बाहे फैलाए तुम्हारे लिए व्याकुल है । देखो ,
किनासे पर लगे इन पेड और पौधों को , जो तुम्हारी मुक्ति के
लिए झूम रहे है । सुनो , पक्षियों तक ने
तुम्हारे लिए प्रार्थना शुरु कर दी है । आसमान की और अपना सर उठा कर देखो । आग उगलता
सूरज तुम्हारे माथे को चूम रहा है । ये सब तुम्हारी मृत्यु के मूक साक्षी होगे । उठो , मुक्ति प्राप्त करो ।
वाकई तुम भाग्यशाली हो । आज जैसा खुशी का दिन इससे पहले तुम्हारे जीवन में कभी
नहीं आया होगा । आज जो व्यक्ति प्राण देगे वे सब सुख पाएगे । आज मरण कटघरे पर
मुक्ति चाहने वालों की भीड लगेगी । आज सबसे पहले मुक्ति का सम्मान तुम्हें प्राप्त
होगा । ऐसा सुनहरा मौका जीवन में एक ही बार मिलता है । इस मौके को मत गंवाओ ,
वरना तुम हार जाओगे बुरी तरह हार जाओगे ।
{एक व्यक्ति भागता हुआ
आता है । उसकी आंखे बंद है । }
पहला : कटघरे
के मालिक ! कटघरे के मालिक !
मालिक : क्या
हुआ
पहला : मैं
मरने आया हूँ । मुझे मुक्ति चाहिए ।
मालिक : अब
आंखे तो खोल दो ।
पहला : नहीं
। इस दुष्ट संसार की तरफ़ एक बार भी देखने की मेरी इच्छा नहीं है । अब मैं प्राण
त्यागे बिना अपनी आंखे नहीं खोलूंगा ।
मालिक : तुम्हें
जरा रुकना होगा ।
पहला : नहीं
.. नहीं ,
मुझमें रत्ती भर भी धीरज नहीं । मैं तुम्हारे पांव पडता हूँ । { पैर
टटोलते हुए }
कहां है तुम्हारे पांव
मालिक : पांव
पड़ने की जरुरत नहीं ।
पहला : मैं
तुम्हारी फ़ीस दूंगा ।
मालिक : वह
तो सब देते है ।
पहला : ज्यादा
दूंगा ।
मालिक : यहां
रिश्वतखोरी नहीं चलेगी
पहला : तुम्हें
कैसे समझाऊं
मालिक : तुमने
यह मार्ग क्यों अपनाया
पहला : दूसरा
कोई मार्ग मेरे पास नहीं था । मैं जीवन से ऊब कर ही मरने आया हूँ । तुम्हारी क्या
फ़ीस है
मालिक : यह
धंधा केवल पैसा कमाने के लिए ही नहीं है । मेरा काम ग्राहक की समस्या का समाधान भी
है । मेरे लिए सब ग्राहक एक समान है । यहां चमचागिरी नहीं चलती । चीनी भाषा में एक
कहावत है जो
पहले आता है उसकी पारी पहली होती है और अनाज भी उसी का पहले पीसा जाता है ।
पहला : मुझे
चीन की नहीं मरने की पडी है ।
मालिक : धीरज
रखो ......... थोडा धीरज रखो ।
पहला : इस
धरती पर मुझे एक एक पल एक एक युग के समान लग रहा है । मुझे अधिक मत
तड़पाओ । मैं विनती करता हूँ , मुझे जरा पहले निपटा
दो .............
{ एक दूसरा व्यक्ति
दूसरी ओर से आता है }
दूसरा : तुम
दोनो में से इस कटघरे का मालिक कौन है
मालिक : कौन
लगता है
दूसरा : देखो
,
मजाक उड़वाने के लिए मेरे पास बिल्कुल भी वक्त नहीं है । मुझे मालिक से जरुरी काम
है ।
मालिक : मैं
ही इस कटघरे का मालिक हूँ ।
दूसरा : मुझे
तुमसे ही काम है ।
मालिक : कहो
।
दूसरा : इनके
सामने
मालिक : अपने
धंधे के अलावा कोई और काम करने की मुझे फुर्सत नहीं है । और मेरा धंधा तो बिल्कुल
खुला है ............
दूसरा : मैं
कान मे बताऊंगा ।
मालिक : बता
दो ।
दूसरा : { कान में }
मुझे मरना है ।
मालिक : इसमें
छिपाने की क्या बात है । मरना सभी को है ।
दूसरा : लेकिन मुझे थोडी जल्दी है ।
मालिक : जल्दी
सभी को है ।
पहला : मैं
यहा पहले आया हूँ ।
दूसरा : तुम
भी मरने के लिए आए हो
पहला : तुम
जरा गप शप मारो , तब तक मुझे मरने दो ।
दूसरा : तुम
गप शप मारो तब तक मैं मर जाता हूँ ।
पहला : मजाक
मत करो । मेरी आंखे बंद है इसलिए मैं चुप हूँ ।
दूसरा : तुमने
आंखे बंद की है , यह
जानने की भी मेरी इच्छा नहीं है ।
पहला : और
मेरी भी बताने की इच्छा नहीं है ।
दूसरा : मालिक
! मुझे पहले निपटा दो ।
पहला : नही
,
पहले मुझे ।
दूसरा : अंधे
, परे
हट ।
पहला : अंधा
किसे कहते हो आंखे फूटी नहीं है मेरी
।
दूसरा : आंखे
फूटी क्या और बंद क्या , एक ही बात है ।
पहला : दादागिरी
करता है ।
दूसरा : तुम्हारे
साथ बहस करने के लिए मेरे पास समय नहीं है ।
पहला : मैं
भी कोई फालतू नहीं हूँ ।
दूसरा : फालतू
नहीं है तो जान देने क्यो आया
पहला : जान
दूं या न दूं , तू
एक तरफ हट ।
दूसरा : नहीं
,
पहले तू नहीं । पहले मैं ..........
पहला : पहले
मैं ............
{ दोनों झगड़ने लगते है }
मालिक : झगडा
मत करो । आपस में तय कर लो कि पहले कौन जान देगा
पहला : ऐसा
कैसे मैं
पहले आया था । इसलिए मुझे पहले मरने दो ।
दूसरा : अगर
तुम चाहो तो मैं तुम्हारे हाथ पर कुछ रख दूं । मुझे पहले मरने दो । घर के लोग अगर
मुझे ढूंढते हुए अगर यहां आ गए तो मेरी योजना विफल हो जाएगी ।
पहला : ऐसा
है तो दोनों ही साथ साथ मरेगे ।
मालिक : नहीं
। मेरे कटघरे से एक वक्त में सिर्फ एक व्यक्ति ही कूद सकता है ।
दूसरा : ऐसा
है तो पहले मैं जाता हूँ ।
पहला : नहीं
पहले मैं ..........
दूसरा : नहीं
, ये
लो मेरे पैसे ।
{ दोनों पैसे सामने रख
देते है और कहते है पहले मेरे पैसे लो इतनी देर से वह व्याकुल खडा था । अब
वह आगे आता है }
वह : नहीं
! पहला अधिकार मेरा है ।
पहला : ये
कौन बोला {
उसे टटोल कर देखता है }
दूसरा : तुम
यहां क्यो आए हो
वह : मैं
भी मरने आया हूँ ।
पहला : लो
फिर इतनी देर से चुप क्यों थे
मालिक : एक
ग्राहक दूसरे ग्राहक का अपमान करे मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं ।
दूसरा : यह
जो कह रहा है ,
क्या वह सच है
मालिक : हाँ
।
वह : { जेब
से पैसे निकाल कर }
तुम्हारी फ़ीस क्या है
मेरे पास सिर्फ पचास रुपय है ।
मालिक : इसे
कहते है संयोग । मेरी फ़ीस भी पचास रुपय ही है । { मालिक पैसे लेता है }
वह : अच्छा
,
विदा ।
{
संगीत । वह कटघरे के बिल्कुल पास जाता है , सभी उसके कूदने की
आवाज सुनने के लिए उत्सुक है । अंतत: नाले में कूदने की आवाज }
तीनों : {
पहला ,
दूसरा व मालिक की सांसे } हा...... हा ......
{ पहला व दूसरा व्यक्ति
घबराये हुए ....... वे कांप रहे हैं }
पहला : नहीं
नहीं मुझे मरना नहीं है । जीना है ।
दूसरा : मुझे
मरना नहीं है । मुझे जीना है ।
पहला : मैं
चला ।
दूसरा : मैं
भी चला ।
{
दोनों के भागने की आवाजे .......... संगीत }
वह
पानी से बाहर निकल आता है ।
वह : मैं
आ गया हूँ ।
मालिक : ओ
......... तुम ।
वह : संसार
में मुझे सब ने धोखा दिया । छला । परंतु तुमने .... केवल तुमने मुझे सच्ची राह
दिखाई । झूठ नहीं कह रहा हूँ । सच कह रहा हूँ। तुम्हारा उद्देश्य कुछ भी रहा हो ,
जैसे कई बार असाध्य रोग में जहर लाभदायक सिद्ध होता है ऐसे ही मेरे साथ हुआ । समझो
, नदी
में कुदने से पहले वाला मैं - नदी में कुदने के बाद वह नहीं रहा । मेरा पुनर्जन्म
हुआ है। पहाड़ की निश्चलता को चीरकर बहती हुई इस नदी ने मुझे जीवन की तमाम
रुकावटों पर विजय पाने की स्फूर्ति दी । इन लहरो ने मेरे कानो में
जीने
का मंत्र फूंका । इन पेडों ने मुझे नई दृष्टि दी । इन पक्षियों ने मुझे प्रेरणा दी
। मुझे नई जिंदगी मिली ।
मालिक : शाबाश
। तुम अब वाकई जीने के लायक हो । मृत्यु पर तुमने विजय पा ली है । तुम सामान्य
मनुष्य के स्तर से ऊपर उठ गये हो । अब संसार की तमाम रुकावटे , तमाम मुसीबतें
तुम पार कर
सकोगे । तुम असामान्य की पदवी प्राप्त कर
चुके हो ।
वह
: मैं जीवन भर तुम्हारा
उपकार मानूंगा ।
मालिक : हमेशा
जयी विजयी बनो ।
*************
{
समापन संगीत }